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इस दुनिया में जहां लोग उजाले मे हैं, उसमे मैं एक अंधेरा हूँ, रात का साया न बन पाया, उन लोगों का साथ न दे पाया, जो रात मे परछाई बन साथ थे मेरे, इसलिए तो में उस कोहरे का सबेरा हूँ , जिसमे उजाला होने के बाद भी कोहरे ने मुझे सबेरे में छुपाया हुआ है |
-अंकित सरोनिया
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2020: साल या त्रासदी.…
by Prawal Gupta….
आजकल अक्सर यही सुनने को मिलता है कि ये साल कब खत्म होगा... चाहे चौराहा हो या गली-नुक्कड़ या फिर किसी चाय की टपरी.. इन सभी जगहों पर यही एक बातचीत का मुद्दा बना हुआ है ।..
वर्ष है २०२०!.. हर कोई यही चाहता कि ये वर्ष जल्द से जल्द समाप्ति की ओर अग्रसर हो... शायद! सब यही उम्मीद लगाए बैठे है कि यह साल समाप्त होते ही सब पहले की भांति सामान्य हो जायेगा, परन्तु क्या हो पाएगा?..
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मानव सृष्टि के नियमों को इतनी भली-भांति नहीं जानता जितना वह सोचता है, फिर भी वह अपने अहंकार के आगे परास्त हो जाता है। वह यह नहीं सोच पाता कि वह सृष्टि को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, अपने कुछ निजी फायदे और अनंत लालच के कारण। आजकल, आपने सबको कहते हुए सुना होगा कि 'Earth is Healing itself' अर्थात् 'धरती अपने आप को स्वस्थ कर रही है'.., परंतु हम इस बात पर विचार नहीं करते कि ऐसी स्थिति पैदा की किसने। शायद, यह भी सोच लेते हैं कि हमारे अकेले करने से क्या फर्क पड़ेगा। परन्तु, हमारी-आपकी जो ये प्यारी सी दुनिया है ना, वह अपना संतुलन कभी नहीं बिगड़ने देती क्योंकि बात सिर्फ हमारी आपकी नहीं है, बात है हमारी आने वाली पीढ़ियों की, तो यह हमारी सृष्टि जो है वह अपनी हर कोशिश करती है अपने आप को संजोने की क्योंकि आप रहे या ना रहे यह सृष्टि तो रहेगी।.…
पिछले वर्ष के अंत और इस वर्ष के आगमन से ही प्रकृति ने अपने आपको संजोने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। इसकी मार पृथ्वी पर हर प्राणी, चाहे वह मनुष्य हो या जानवर सब पर पड़ी। आइए जानते है कि किस प्रकार सृष्टि अपने उपचार में स्वयं लगी हुई है और इसका प्रभाव पृथ्वी पर जीने वाले हर प्राणी पर किस प्रकार हो रहा है ये तो आप अपने चारों ओर नजर उठाकर देख ही रहे हैं।...
पहली आपदा जो इस वर्ष देखने को मिली उसकी शुरुआत इस वर्ष के आगमन से चार दिन पहले ही हो चुकी थी, वह है ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग, जिसने जानवरो पर तो इतना कहर बरपाया कि पृथ्वी पर बसने वाले हर जीव की आत्मा कहराकर रो पड़ी। आग का कारण तापमान में अत्यधिक बढ़ोतरी और महीनों तक सूखे पड़ने ने भीषण आग की मानो कोई लड़ी लगा दी ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में। सबसे अधिक नुकसान New South Wales and Victoria में हुआ।... जान माल के साथ साथ लाखों वर्ग हेक्टेयर की जमीन, पार्क को नुकसान पहुंचा, करीब 33 आपातकालीन दलकर्मियो को प्रकृति के प्रकोप के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी।..कई जंगली जानवरों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। करीब करोड़ों जानवरों के साथ साथ 400 लोगों ने धुएं से घुटन के कारण अपना दम तोड़ दिया। ऑस्ट्रेलिया के कई इलाकों में आपातकालीन स्थिति घोषित करनी पड़ी। यह इस साल का प्रकृति की ओर से पहला संकेत था कि अब वह और उत्पीड़न बर्दाश्त नही कर सकती।…
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लेकिन ऐसा भी नहीं था कि सिर्फ भायभय तस्वीर ही इस घटना के दौरान सामने आई, कई तस्वीरें ऐसी भी देखने को मिली जिसने इंसानियत की एक मिसाल कायम कर दी। दलकर्मियों द्वारा जानवरों को पानी पिलाने की तस्वीर बहुत वायरल हुई। कई संसथाओं ने फंड्स इकट्ठा कर मदद पहुंचाई।..
सारी दुनिया में ऑस्ट्रेलिया के लिए सहानुभूति भी थी तो भीषण गर्मी और आग की लपेट में आते हुए जानवरों के प्रति दिल में दर्द भी था।... लेकिन अभी यह मंजर कहा थमने वाला था, अभी तो लोगों को और भी आपदाएं झेलनी थी।…
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उधर दूसरी तरफ, इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में बाढ़ की तस्वीरें सामने आने लगी।... करीब 4 लाख लोगों को अपने ठिकानों से पलायन करना पड़ा, तो करीब 66 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।.. करीब 5 फीट तक पानी जब शहर में घुसा तो सब तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा था। बाढ़ के साथ साथ मूसलाधार बरसात ने मुश्किलें और बढ़ा दी। लोगों के डूबने के साथ साथ भूस्खलन और इलेक्ट्रिक शॉक की भी खबरें सामने आई।.. यह प्रकृति का दूसरा संकेत था।…
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इसके बाद जो आया उसने तो मनुष्य के जीने और रहने का ढंग ही बदल दिया।... कोरोनावायरस का आगाज वैसे तो दिसंबर 2019 में ही हो गया था परंतु इसने सर्वव्यापी महामारी का रूप चंद ही दिनों में धारण कर लिया। पहला केस चाइना के वुहान शहर में आया, तब किसी को एहसास भी नहीं था कि यह दुनिया में तबाही मचा देगा।…
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11 जनवरी 2020 को चाइना में पहली मौत के बाद कोरोनावायरस ने घातक महामारी का रूप धारण कर लिया। 11 मार्च 2020 को 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' ने इसे सर्वव्यापी महामारी घोषित कर दिया। इसके बाद तो मानो इंसान जैसे पिंजरे में कैद हो गया हो, सारी आजादी धरी की धरी रह गई। दुनिया भर के कई देश लॉकडाउन में जाने लगे, दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और इंसान एक दूसरे से बचने लगे।.. चेहरे पर मास्क और सामाजिक दूरी का चलन ऐसे बढ़ गया जैसे कि यह जिंदगी का हिस्सा बन गए।
28 जून 2020 को कोरोनावायरस ने एक करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया और मरने वालों की संख्या 500000 के पार हो गए। लॉकडाउन करके देशों ने कोरोना की गति को धीमा तो किया, लेकिन कब तक लॉकडाउन रखा जाए, यह देखते हुए अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई और इसके बाद मानो विस्फोट हो गया हो, संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी।.. लोगों ने सिर्फ अपनी आजादी ही नहीं खोई, कई लोग अपनी कमाई का जरिया भी खो बैठे, करोड़ों नौकरियां गई, बहुत से उद्योग बंद हो गए।
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एक बात गौर करने वाली है, कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था चरमरा दी गई वैसे वैसे पृथ्वी अपने आप को स्वस्थ करती गई, खबर आने लगी कि ओजोन लेयर में होल भर गया है, प्रदूषण में गिरावट आई है और नदियां साफ हो रही है।.. शायद यह मानव की ही करतूतें थी जिसने प्रकृति को मजबूर कर दिया कि वह कुछ कदम खुद ही उठाए।
कोरोनावायरस ने इंसानों की हंसती-खेलती जिंदगी में जैसे ग्रहण लगा दिया, आज इंसान पंछियों की तरह कैद है और पंछी खुले आसमान में घूम रहे हैं।..सब इसी बात की आस लगाए बैठे हैं कि कब वैक्सीन आए और कब जिंदगी पटरी पर वापस लौटे। लेकिन, सवाल यह है क्या इंसान अब भी सबक ले पाएगा?..
कोरोनावायरस के बाद तो जैसे आपदाओं की झड़ी लग गई, फिलीपींस में ज्वालामुखी फटने की खबर आने लगी जिसके कारण 300000 लोगों को पलायन करना पड़ा। वही भूकंप ने ईरान, भारत, फिलीपींस, टर्की, चाइना और रसिया जैसे कई देशों को अपनी चपेट में ले लिया।
वास्तव में यह साल आपदाओं से भरा हुआ है। भूकंप के बाद अब बारी तूफानों की थी, अम्फन, जैसे महा तूफान ने भारत और बांग्लादेश में कहर ढा दिया, हालांकि जान का इतना नुकसान नहीं हुआ लेकिन माल का तो हुआ। कई लोगों के आशियाने बिखर गए, उन्हीं बिखरे हुए आशियानों में उम्मीद की किरण डूबती दिखाई दी। 12 लोगों की मौत की खबर आई वहीं करोड़ों रुपए का नुकसान पश्चिम बंगाल को झेलना पड़ा। भारत में उड़ीसा और पश्चिम बंगाल पर तूफान का असर सबसे ज्यादा था। कई लोगों की रोजगार भी इस तूफान ने छीन ली तटीय इलाकों के पास रहने वाले मछुआरे तथा अन्य लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा।... 'अम्फन' तूफान के कहर से अभी भारत उभरा भी नहीं था कि, महाराष्ट्र में 'निसर्ग' तूफान की खबर आने लगी। महाराष्ट्र, जो नोवेल कोरोनावायरस की चपेट में पहले ही बुरी तरह आ गया था उसके बाद इस तूफान ने महाराष्ट्र के मनोबल को बुरी तरह प्रभावित किया। महाराष्ट्र को भी बहुत नुकसान झेलना पड़ा।….
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इन सभी चीजों के बीच भारत को एक कठिनाई का और सामना करना पड़ा वह थी 'प्रवासी मजदूरों का पलायन'... कोरोनावायरस के कारण लगे लॉकडाउन से पूरे देश में जैसे अफरा-तफरी मच गई सभी लोग अपने अपने घरों की ओर भागने लगे। रोजी रोटी की आस में अपने गांव को छोड़ कर शहर आए हुए मजदूरों पर लॉक डाउन की मार ऐसी पड़ी कि उनकी रोजी तो छिन ही गई और रोटी के लाले भी पड़ गए। भारत सरकार चाहती थी, कि 'जो जहां है वहीं रहे', लेकिन मनुष्य चाहे कैसा भी हो चोट लगने पर तो मां-मां ही पुकारता है इसीलिए वायरस से जान गंवाने के खौफ से लोगों को घर-बार याद आ गया। लॉकडाउन के कारण यातायात सेवाएं बंद होने से मजदूर अपने परिवार और अपने बच्चों को लेकर पैदल ही निकल पड़े, हजारों मील का सफर कैसे तय हो, भूखे प्यासे, यह एक बड़ा सवाल था क्योंकि ना तो उनकी आमदनी चल रही थी और ना ही कुछ बचत के पैसे थे और अगर थे भी वह खर्च हो गए। प्रवासी मजदूरों को जितना प्रकोप झेलना पड़ा उतना शायद ही किसी और को झेलना पड़ा हो।..
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इसके बाद इंसानियत को तार-तार करने वाली तस्वीरें भी सामने आए सरकार के द्वारा मुहैया कराए जा रहे राशन पानी के इंतजाम काफी तो नहीं थे, लेकिन जो थे उनमें भी कई जगह खाने में कीड़ों की शिकायत, राशन वितरण करने वालों की बदसलूकी जैसे कि मजदूरों को जानवरों की तरह फेंक फेंक के खाना दिया जा रहा था।
तपती धूप में और नंगे पैर कई मजदूरों ने अपना दम तोड़ दिया। सरकार द्वारा ट्रेनें चलाई गई लेकिन उनमें इंतजाम वायरस को लेकर इतने काफी नहीं थे जितने होने चाहिए थे। एक तरफ मजदूरों की जान जा रही थी और दूसरी तरफ सियासत अपने जोरों शोरों पर थी। सभी चीजों को लेकर सियासत होने लगी ट्रेन, बस या फिर मजदूरों को पहुंचाने का कोई भी इंतजाम हो और मजदूर इन सब के बीच पिस गया। हजारों मजदूरों की जान भुखमरी, ट्रेन से कटने तथा पैदल चलने पर पैरों में पड़े छालों से हो गई, कई बच्चों ने अपना बाप खो दिया तो कई पिताओं ने अपने बच्चे। मंजर दुख भरा था, सब की आत्माएं रो रही थी और सरकारें सो रही थी।…
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पर ऐसा भी नहीं कह सकते कि इंसानियत बिल्कुल ही खत्म हो चुकी थी, सरकारों ने इंतजाम किए लेकिन वह पर्याप्त नहीं थे। कई टीवी चैनलों में बहुत सी मुहिम चलाई जिसके जरिए मजदूरों को, बुजुर्गों को मदद पहुंचाई कई कई निजी संस्थाएं भी सामने आईं, कई लोगों ने व्यक्तिगत तौर पर जो बन पड़ा वो किया कई बॉलीवुड सितारे भी सामने आए जिन्होंने मजदूरों को उनके घर पहुंचाया और इस महामारी के संकट में देश की मदद की और इंसानियत को नया जन्म दिया। महामारी के संकट के बीच इन्हीं सब नजारों ने यह बता दिया कि इंसानियत अभी इतनी भी कमजोर नहीं हुई कि एक वायरस के सामने घुटने टेक दे।
लेकिन, इससे एक बात और साफ हो गई कि बड़े-बड़े राजनेता जो वादे करते हैं उन में कितना खोखलापन होता है। इस वायरस नहीं है बता दिया कि अभी हमारे देश को स्वास्थ्य और रिसर्च में कितना आगे बढ़ना है और एक बात और इसने बिखरे हुए सिस्टम की पोल भी खोल दी।..
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कोरोनावायरस जैसी वैश्विक महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है इसके ऊपर से और प्राकृतिक आपदाओं मैं मानव की आशाओं की दम तोड़ने की भरपूर कोशिश की है।
कोरोनाकाल के बीच ही उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग लग गई और 'असम' में बाढ़ का प्रकोप छा गया। यह वर्ष वास्तव में ही दुखदाई है, लेकिन संकटों का अंदाजा सिर्फ इस बात से नहीं लगाया जा सकता कि उनमें जान कितने लोगों ने गंवाई बल्कि इसका अंदाजा इस बात से लगाना चाहिए कि लोग-बागों की रोजमर्रा की जिंदगी में कितना बदलाव आया, कितने लोगों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा। जो अपनी झुग्गियां बनाकर रहते थे वह कहां जाएंगे, सरकारें आपदाओं में कम से कम जान जाने के हिसाब से वाहवाही लूटना चाहती हैं लेकिन क्या यह सही है?... क्या वह लोग जिनका सब कुछ लुट गया आपदा में उनकी कोई नहीं सुनेगा, इसीलिए तो सरकारें चुनते हैं कि आपदा के वक्त में कोई उनके साथ खड़ा हो जिसने पहले से सब इंतजाम कर रखा हो।…
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यह साल अभी समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन सिर्फ 6 महीनों में हम इतनी आपदाएं झेल चुके हैं कि सभी लोग यही दुआ कर रहे हैं कि यह साल सिर्फ 6 महीने का हो तो ही अच्छा है।... यह वर्ष तो बीत ही जाएगा क्योंकि समय किसी के लिए नहीं रुकता, यह सृष्टि का नियम है और नियम इंसान तोड़ता है सृष्टि नहीं। 'विक्टर हूगो' का एक कथन है-
"Even the darkest nights will end and sun will rise on us again"..…
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दुनिया बदल रही है और इसके साथ ही लोग-बागों के रहने का रंग-ढंग भी तेजी से बदल रहा है। लेकिन सवाल है कि क्या हम पृथ्वी के साथ खिलवाड़ करना बंद कर देंगे?.. क्योंकि आप माने चाहे ना माने लेकिन कहीं ना कहीं इन आती हुई आपदाओं में हाथ तो सभी का है। सोच कर देखिए अगर ना होता तो जब हम बंद है तभी धरती क्यों अपने आप को संवारने में लगी हुई है।.. तो तय हम सभी को करना है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ना चाहते हैं एक सुंदर पृथ्वी जैसे हम सब ने देखा है या फिर कोई वीरान टापू जैसा ग्रह जहां पर कोई ठीक से सांस भी नहीं ले सकता।... क्योंकि अगर इंसानियत को हमें बचाना है तो हम इस प्रकार नहीं जी सकते कि हमारे पास कोई और रास्ता है या कोई और ग्रह है जहां हम जाकर बस जाएंगे।..
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क्योंकि "अंत में सिर्फ पृथ्वी ही एक ऐसी चीज है जो हम सभी के बीच समान है"!..…
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HISTORY OF OTTOMAN EMPIRE
Ertugrul Ghazi is the founder of the Ottoman Caliphate. He was born in 1188 AD and died in 1280 AD. Some books mention 1281. He had three sons Gohar, Shehryar and Usman He later established the Khilafah.The caliphate was named after the same son of Uthman of Ertugrul, the Ottoman Caliphate, but the foundation of the caliphate was laid by Ertugrul Ghazi.The same caliphate then defended the Muslim Ummah with the swords of these Turks for 600 years, from 1291 AD to 1924 AD.Ertugrul Ghazi’s family came here from Central Asia and his ancestor Amjad Oz Khan Oghuz khan had twelve sons from whom they became twelve tribes, one of which was the Kayi tribe to which Ertugrul Ghazi belonged.Your father’s name was Suleiman Shah, Artagul Ghazi had three more brothers, Sarem, Zaljan, Guldaro, your mother’s name was Haima.Your tribe first came from Central Asia to Iran and then from Iran to Anatolia. To escape the Mongol invasion where Sultan Ala-ud-din who was the Sultan of the Seljuk Seljuk Empire and this Seljuk Turkish Empire was founded by Sultan Alap Arslan.By defeating Byzantine in the battle of Manzikert in 1071, Sultan Alp Arsalan was a great figure in history and went on to become the head of the same empire. These 12 tribes lived under the shadow of Sultan Alauddin Oghuz Khan.
And Ertugrul Ghazi became the chief of the Qai tribe. After the death of his father Suleiman Shah, the Ahl al-Ahl came first.Then he went to Aleppo. 1232 Where Sultan Salahuddin Ayubi’s grandson Aziz ruled, first Ertugrul Ghazi befriended Aziz then married Sultan Alauddin’s niece Halima Sultan with whom he had three sons.He befriended the Ayyubids and the Seljuks, conquered a stronghold of the Crusaders near Aleppo, and then became very close to Ertugrul Sultan Allauddin.
As the Mongol invasion approached, Ertugrul Ghazi defeated Noyan, a key Mongol leader. Noyan was the right hand of the Mongol king Ogtai Khan, Ogtai Khan was the son of Genghis Khan, and Ogtai’s son was Hulagu Khan Was running.And then Ertugrul Ghazi led his tribe to So Gut Sogut near Constantinople near Constantinople, and first there he conquered an important fortress of Byzantine Byazantine and gathered all the Turkic tribes.After the death of Sultan Allauddin, Ertugrul Ghazi became the sultan of the Seljuk kingdom and his descendant was Sultan Muhammad the Conqueror, who conquered Constantinople in 1453 and thus fulfilled the prophecy of the Holy Prophet(saw).Fighters like Ertugrul Ghazi are rare in history, but unfortunately our generation does not know them.
All the fighters who have gone through Islam who have done something for Islam, they must have a spiritual aspect, behind them there must be some spiritual personality (Wali Allah) whose duty is imposed by Allah.
Pick up the history from the beginning of Islam till now even today if anyone is doing any duty for Islam and for the Muslim Ummah then they must have some spiritual aspect.Sheikh Mohi-ud-Din Ibn Al-Arabi (may God have mercy on him) was behind this warrior Ertugrul Ghazi and by the grace of the Holy Prophet (PBUH) it was Sheikh Mohi-ud-Din Ibn Al-Arabi who came from Andalusia to help Ertugrul Ghazi.This is not emotional or exaggerated. Only he who has received this light of spirituality can understand all this. And he who does not receive this light is blind and will not understand. Such as the Liberal Secular Brigade. The beautiful hadith of the Holy Prophet (saw) is as follows:
“Fear the believer’s vision;
Newborn baby in canal..
Death on arrival in the world, the newborn was thrown into the canal
The body of a newborn girl was found in the water on Tuesday morning in the Sujan Ganga Canal flowing around the Lohagarh Fort of the city. Someone threw the baby in the water as soon as it was born. Seeing the dead body in water, people got inflamed there. The police have kept the dead body in the morchary.
According to the information received, devotees were going to see Bihariji temple in the morning. Just then, a woman who was feeding the fish in the Sujan Ganga Canal saw the dead body of a child in the water. She told other people. A large number of people gathered there. Someone reported this to police control at number 100. At which Chauburja Outpost Incharge Deepa Sharma of Mathura Gate Police Station reached the spot. With the help of divers, they got the body out of the water.
Deepa Sharma told that the body belongs to a newborn girl. This body found in water seems to be about eight-ten hours old because its placenta is looking fresh. He said that the dead body of a newborn girl has been kept in the fronts of the district hospital. Also, a case is being registered. Mathura Gate police station to investigate who has thrown the body into the water. People was so angry at that time. Police officers control the situation by reaching on time.